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Monday, 2 March 2020

जैन धर्म/महावीर स्वामी | जैन धर्म का इतिहास| Jain Dharm| Indian History|...







जैन धर्म
छठवीं शताब्दी में उदित हुए उन
62 नवीन धार्मिक संप्रदायों में से एक था







जैन धर्म के संस्थापक इसके प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे







जैन परंपरा में धर्मगुरुओं को तीर्थंकर कहा गया है तथा इनकी संख्या 24 बताई गई है।







जैन शब्द जिन से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ होता है इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला।





mahabir-



जन्म–कुंडय़ाम (वैशाली)
जन्म का वर्ष–540 ई०पू०
पिता–सिद्धार्थ (ज्ञातृक क्षत्रिय कुल)
माता–त्रिशला (लिच्छवी शासक चेटक की बहन)
पत्नी–यशोदा, 
पुत्री–अनोज्जा प्रियदर्शिनी







भाई–नंदि वर्धन,
गृहत्याग–30 वर्ष की आयु में ( भाई
की अनुमति से
)
तपकाल–12 वर्ष
तपस्थल–जम्बीग्राम (ऋजुपालिका नदी के किनारे) में एक साल वृक्ष
कैवल्य–ज्ञान की प्राप्त 42 वर्ष की अवस्था में
निर्वाण–468 ई०पू० में 72 वर्ष की आयु में पावा में
धर्मोपदेश देने की अवधि–12 वर्ष 







महावीर के उपदेशों की भाषा प्राकृत (अर्द्धमगधी) थी।

महावीर के दामाद जामलि उनके पहले शिष्य बने। 
नरेश दधिवाहन की पुत्री चम्पा जैन–भिक्षुणी बनने वाली पहली महिला थी।
जैन धर्म
में ईश्वर की मान्यता तो है, परन्तु जिन सर्वोपरि है |
स्यादवाद
एवं अनेकांतवाद जैन धर्म के ‘सप्तभंगी ज्ञान’ के अन्य नाम हैं।
जैन धर्म के अनुयायी, कुछ प्रमुख शासक थे–उदयन, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंगराज खारवेल, अमोधवर्ष, राष्ट्रकूट राजा, चंदेल शासक।







यजुर्वेद के अनुसार ऋषभदेव का जन्म इक्ष्वाकु
वंश में हुआ। 
जैनियों के 23वें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ का जन्म काशी में 850 ई०पू० में हुआ था।
पाश्र्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के इक्ष्वाकू–वंशीय राजा थे। पाश्र्वनाथ ने 30 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया।
पाश्र्वनाथ ने
सम्मेत पर्वत (पारसनाथ पहाड़ी) पर समाधिस्थ होकर 84 दिनों तक घोर
तपस्या की तथा कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त किया। पाश्र्वनाथ ने सत्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रहका उपदेश दिया।
पार्श्वनाथ के अनुयायी निग्रंथ कहलाये। 







जैन
धर्म के आध्यात्मिक विचार सांख्य दर्शन से प्रेरित हैं |
अपने
उपदेशों के प्रचार के
लिए महावीर ने जैन संघ की स्थापना की।
महावीर के 11 प्रिय शिष्य थे जिन्हें
गणघट कहते थे।
इनमें 10 की मृत्यु उनके जीवनकाल में ही हो
गई।
महावीर
का 11वाँ’ शिष्य आर्य सुधरमन था जो महावीर की मृत्यू के बाद जैन संध का प्रमुख बना
एवं धर्म प्रचार किया |
10
वीं शताब्दी के मध्य में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में चामुंड (मैसूर के गंग वंश के
मंत्री) ने गोमतेश्वर की मूर्ती का निर्माण कराया |







चंदेल
शासकों ने खजुराहो में जैन मंदिरों का निर्माण कराया |
मथुरा
मौर्य कला के पश्चात जैन धर्म का एक प्रसिद्द केंद्र था |
नयचंद्र सभी जैन तीर्थंकरों में संस्कृत का सबसे बड़ा विद्वान था। 
महावीर के निधन के लगभग 200 वर्षों के पश्चात मगध में एक भीषण अकाल पड़ा। 
उपरोक्त अकाल के दौरान चंद्रगुप्त मौर्य मगध का राजा एवं भद्रबाहु जैन संप्रदाय का प्रमुख था।
राजा चंद्रगुप्त एवं भद्रबाहु उपरोक्त अकाल के दौरान अपने अनुयायियों के साथ कर्नाटक चले गये।
जो जैन धर्मावलंबी मगध में ही रह गये
उनकी जिम्मेदारी स्थूलभद्र पर दी गई।
भद्रबाहु
भद्रबाहुके अनुयायी जब दक्षिण भारत से लौटे तो उन्होंने निर्णय लिया की पूर्ण नग्नता‘ महावीर की शिक्षाओं का आवश्यक आधार होनी चाहिए।
जबकि स्थूलभद्र के अनुयायियों ने श्वेत वस्त्र धारण करना आरंभ किया एवं श्वेतांबर कहलाये, जबकि भद्रबाहु के अनुयायी दिगंबर कहलाये
भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में जैन तीर्थंकरों की जीवनियों का संकलन है।
महावीर स्वामी को निर्वाण की प्राप्ति मल्ल राजा सृस्तिपाल के राजाप्रासाद में हुआ। 

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